Ādhunika Hindī ālocanāGrantha-Bhāratī, 1967 - 475 lappuses |
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1.–3. rezultāts no 87.
126. lappuse
... होता है । ( २ ) अर्थान्तर - जो वर्ण्य नहीं है उसका यदि वर्णन किया जाय तो अर्थान्तर दोष होता है । ( ३ ) अर्थहीन - अर्थ यदि असंबद्ध हो अथवा ...
... होता है । ( २ ) अर्थान्तर - जो वर्ण्य नहीं है उसका यदि वर्णन किया जाय तो अर्थान्तर दोष होता है । ( ३ ) अर्थहीन - अर्थ यदि असंबद्ध हो अथवा ...
127. lappuse
... होने से होता है । ( ९ ) विसन्धि - प्राप्ति होने पर यदि सन्धि न हो तो यह दोष होता है । इसे व्याकरण दोष कह सकते हैं । । ( १० ) शब्दच्युत ...
... होने से होता है । ( ९ ) विसन्धि - प्राप्ति होने पर यदि सन्धि न हो तो यह दोष होता है । इसे व्याकरण दोष कह सकते हैं । । ( १० ) शब्दच्युत ...
226. lappuse
... होने पर सहृदय का हृदयस्थित स्थायीभाव उद्बुद्ध होता है और उसका भी साधारणीकरण हो जाता है । साधारणीकृत स्थायी भाव ही रस है । इस ...
... होने पर सहृदय का हृदयस्थित स्थायीभाव उद्बुद्ध होता है और उसका भी साधारणीकरण हो जाता है । साधारणीकृत स्थायी भाव ही रस है । इस ...
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अथवा अधिक अपने अभिनवगुप्त अर्थ अर्थात् अलंकार आदि आनन्दवर्धन आलोचना इन इन्होंने इस इस प्रकार ई० उसका उसके उसे एक ऐसा ओर कर करने कला कल्पना कवि कहा जा कहा है का काल कालिदास काव्य काव्य के किन्तु किया गया है किया है किसी की कुछ के कारण के द्वारा के लिए के साथ को कोई क्योंकि गए गया है गुण चाहिए जा सकता है जाता है जिस जी ने जो तक तथा तो था दिया दो दोनों नहीं है नाटक नाट्य नाम ने पर पृ० प्रकार प्रथम प्रयोग प्राप्त प्लेटो बात भरत भाव भी भेद मात्र मानते हैं माना जा सकता में ही यदि यह यहां या ये रस लक्षण वस्तु वह वही वाले विचार विवेचन विशेष वे शब्द शुक्ल जी संस्कृत सकती साहित्य से ही स्पष्ट हिन्दी हिन्दी साहित्य ही ही है हुआ है और है कि हैं हो सकता होता है होती होने