Ādhunika Hindī ālocanāGrantha-Bhāratī, 1967 - 475 lappuses |
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1.–3. rezultāts no 82.
235. lappuse
... ही है । " इस प्रकार अभिनव- गुप्त रसप्रतं ति और चारुत्वप्रतीति को एक ही मानते हैं । जगन्नाथ ने दोनों में भेद किया है , किन्तु यह नहीं ...
... ही है । " इस प्रकार अभिनव- गुप्त रसप्रतं ति और चारुत्वप्रतीति को एक ही मानते हैं । जगन्नाथ ने दोनों में भेद किया है , किन्तु यह नहीं ...
312. lappuse
... ही हैं । निबन्ध का प्रथम वाक्य ही है - ' साहित्य शब्द में ही सम्मिलन का भाव विद्यमान है । " शब्द और अर्थ के सम्मिलन की बात तो भामह ने ...
... ही हैं । निबन्ध का प्रथम वाक्य ही है - ' साहित्य शब्द में ही सम्मिलन का भाव विद्यमान है । " शब्द और अर्थ के सम्मिलन की बात तो भामह ने ...
462. lappuse
... ही करामात है । " " इस प्रकार पन्त जी के काव्य में कला को प्रथम स्थान प्राप्त कराने का श्रेय कल्पना के उक्त कार्यों को ही है । ऐसी ...
... ही करामात है । " " इस प्रकार पन्त जी के काव्य में कला को प्रथम स्थान प्राप्त कराने का श्रेय कल्पना के उक्त कार्यों को ही है । ऐसी ...
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अथवा अधिक अपने अभिनवगुप्त अर्थ अर्थात् अलंकार आदि आनन्दवर्धन आलोचना इन इन्होंने इस इस प्रकार ई० उसका उसके उसे एक ऐसा ओर कर करने कला कल्पना कवि कहा जा कहा है का काल कालिदास काव्य काव्य के किन्तु किया गया है किया है किसी की कुछ के कारण के द्वारा के लिए के साथ को कोई क्योंकि गए गया है गुण चाहिए जा सकता है जाता है जिस जी ने जो तक तथा तो था दिया दो दोनों नहीं है नाटक नाट्य नाम ने पर पृ० प्रकार प्रथम प्रयोग प्राप्त प्लेटो बात भरत भाव भी भेद मात्र मानते हैं माना जा सकता में ही यदि यह यहां या ये रस लक्षण वस्तु वह वही वाले विचार विवेचन विशेष वे शब्द शुक्ल जी संस्कृत सकती साहित्य से ही स्पष्ट हिन्दी हिन्दी साहित्य ही ही है हुआ है और है कि हैं हो सकता होता है होती होने