Ādhunika Hindī ālocanāGrantha-Bhāratī, 1967 - 475 lappuses |
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1.–3. rezultāts no 85.
71. lappuse
... ही सारी बातें आलोचनाशास्त्र के शिल्प पक्ष से ही सम्बन्ध रखती हैं , तथापि आलोचना के विकास को ऐतिहासिक दृष्टि से समझने के लिए इनकी भी ...
... ही सारी बातें आलोचनाशास्त्र के शिल्प पक्ष से ही सम्बन्ध रखती हैं , तथापि आलोचना के विकास को ऐतिहासिक दृष्टि से समझने के लिए इनकी भी ...
129. lappuse
... ही विचार किया C अतएव अभिनय करने वाले और देखने वाले इन दोनों की दृष्टि से ही रसविवेचन हो सका है । यही कारण है कि विभाव , अनुभाव और ...
... ही विचार किया C अतएव अभिनय करने वाले और देखने वाले इन दोनों की दृष्टि से ही रसविवेचन हो सका है । यही कारण है कि विभाव , अनुभाव और ...
217. lappuse
... ही सूचित करती है । " जो श्वानभय से ही भ्रमण नहीं कर सकता था वह सिंह के भय से तो ओर दूर ही रहेगा । इसलिए ' भ्रमण कीजिए ' का अर्थ ' मत ...
... ही सूचित करती है । " जो श्वानभय से ही भ्रमण नहीं कर सकता था वह सिंह के भय से तो ओर दूर ही रहेगा । इसलिए ' भ्रमण कीजिए ' का अर्थ ' मत ...
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अथवा अधिक अपने अभिनवगुप्त अर्थ अर्थात् अलंकार आदि आनन्दवर्धन आलोचना इन इन्होंने इस इस प्रकार ई० उसका उसके उसे एक ऐसा ओर कर करने कला कल्पना कवि कहा जा कहा है का काल कालिदास काव्य काव्य के किन्तु किया गया है किया है किसी की कुछ के कारण के द्वारा के लिए के साथ को कोई क्योंकि गए गया है गुण चाहिए जा सकता है जाता है जिस जी ने जो तक तथा तो था दिया दो दोनों नहीं है नाटक नाट्य नाम ने पर पृ० प्रकार प्रथम प्रयोग प्राप्त प्लेटो बात भरत भाव भी भेद मात्र मानते हैं माना जा सकता में ही यदि यह यहां या ये रस लक्षण वस्तु वह वही वाले विचार विवेचन विशेष वे शब्द शुक्ल जी संस्कृत सकती साहित्य से ही स्पष्ट हिन्दी हिन्दी साहित्य ही ही है हुआ है और है कि हैं हो सकता होता है होती होने