Ādhunika Hindī ālocanāGrantha-Bhāratī, 1967 - 475 lappuses |
No grāmatas satura
1.3. rezultāts no 76.
257. lappuse
... संस्कृत के प्रसिद्ध आलोचक आनन्दवर्धन भी कवि थे , उन्होंने अपने उदाहरण भी स्थान - स्थान पर दिए हैं । संस्कृत के सर्वं श्रेष्ठ आलोचक ...
... संस्कृत के प्रसिद्ध आलोचक आनन्दवर्धन भी कवि थे , उन्होंने अपने उदाहरण भी स्थान - स्थान पर दिए हैं । संस्कृत के सर्वं श्रेष्ठ आलोचक ...
283. lappuse
... संस्कृत संस्कार ' क्या वृत्त और क्या प्रवृत्ति सर्वत्र दिखाई पड़ने लगा । 2 आलोचना में भी आधुनिकता इस बात में ही थी कि कवियों का और ...
... संस्कृत संस्कार ' क्या वृत्त और क्या प्रवृत्ति सर्वत्र दिखाई पड़ने लगा । 2 आलोचना में भी आधुनिकता इस बात में ही थी कि कवियों का और ...
301. lappuse
... संस्कृत के रस सिद्धान्त से परिचित कराना ही है । संस्कृत आलोचना का रास्ता पकड़ कर चलने पर भी इन्होंने विश्व साहित्य के परिमित परिसर ...
... संस्कृत के रस सिद्धान्त से परिचित कराना ही है । संस्कृत आलोचना का रास्ता पकड़ कर चलने पर भी इन्होंने विश्व साहित्य के परिमित परिसर ...
Citi izdevumi - Skatīt visu
Bieži izmantoti vārdi un frāzes
अथवा अधिक अपने अभिनवगुप्त अर्थ अर्थात् अलंकार आदि आनन्दवर्धन आलोचना इन इन्होंने इस इस प्रकार ई० उसका उसके उसे एक ऐसा ओर कर करने कला कल्पना कवि कहा जा कहा है का काल कालिदास काव्य काव्य के किन्तु किया गया है किया है किसी की कुछ के कारण के द्वारा के लिए के साथ को कोई क्योंकि गए गया है गुण चाहिए जा सकता है जाता है जिस जी ने जो तक तथा तो था दिया दो दोनों नहीं है नाटक नाट्य नाम ने पर पृ० प्रकार प्रथम प्रयोग प्राप्त प्लेटो बात भरत भाव भी भेद मात्र मानते हैं माना जा सकता में ही यदि यह यहां या ये रस लक्षण वस्तु वह वही वाले विचार विवेचन विशेष वे शब्द शुक्ल जी संस्कृत सकती साहित्य से ही स्पष्ट हिन्दी हिन्दी साहित्य ही ही है हुआ है और है कि हैं हो सकता होता है होती होने