Ādhunika Hindī ālocanāGrantha-Bhāratī, 1967 - 475 lappuses |
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1.–3. rezultāts no 82.
365. lappuse
... या प्रेम कर रहा है ' स्वयं क्रोष या उतिभाव का रसात्मक अनुभव करना नहीं है । रसव्यंजना इस रूप में मानी भी नहीं गई है । अतः भाव व्यजना ...
... या प्रेम कर रहा है ' स्वयं क्रोष या उतिभाव का रसात्मक अनुभव करना नहीं है । रसव्यंजना इस रूप में मानी भी नहीं गई है । अतः भाव व्यजना ...
377. lappuse
... या दर्शक में भी उसी भाव की रसरूप में अनुभूति उत्पन्न करता है । ( २ ) आश्रय के शोक या दुःख का अनुभव श्रोता या दर्शक के हृदय में ...
... या दर्शक में भी उसी भाव की रसरूप में अनुभूति उत्पन्न करता है । ( २ ) आश्रय के शोक या दुःख का अनुभव श्रोता या दर्शक के हृदय में ...
395. lappuse
... या क्रिया के पृथक् - पृथक् साम्य पर ही कवि की दृष्टि रहता है वहां वह उपमा , रूपक , उत्प्रेक्षा आदि का सहारा लेता है और जहां व्यापार ...
... या क्रिया के पृथक् - पृथक् साम्य पर ही कवि की दृष्टि रहता है वहां वह उपमा , रूपक , उत्प्रेक्षा आदि का सहारा लेता है और जहां व्यापार ...
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अथवा अधिक अपने अभिनवगुप्त अर्थ अर्थात् अलंकार आदि आनन्दवर्धन आलोचना इन इन्होंने इस इस प्रकार ई० उसका उसके उसे एक ऐसा ओर कर करने कला कल्पना कवि कहा जा कहा है का काल कालिदास काव्य काव्य के किन्तु किया गया है किया है किसी की कुछ के कारण के द्वारा के लिए के साथ को कोई क्योंकि गए गया है गुण चाहिए जा सकता है जाता है जिस जी ने जो तक तथा तो था दिया दो दोनों नहीं है नाटक नाट्य नाम ने पर पृ० प्रकार प्रथम प्रयोग प्राप्त प्लेटो बात भरत भाव भी भेद मात्र मानते हैं माना जा सकता में ही यदि यह यहां या ये रस लक्षण वस्तु वह वही वाले विचार विवेचन विशेष वे शब्द शुक्ल जी संस्कृत सकती साहित्य से ही स्पष्ट हिन्दी हिन्दी साहित्य ही ही है हुआ है और है कि हैं हो सकता होता है होती होने