Ādhunika Hindī ālocanāGrantha-Bhāratī, 1967 - 475 lappuses |
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1.–3. rezultāts no 81.
134. lappuse
... ही है । इसके दो अर्थ हो सकते हैं , साधारण उक्ति और प्राकृतिक उक्ति । ' जिसकी जैसी प्रकृति है , उसका वैसा ही वर्णन करना ' अर्थ में ही ...
... ही है । इसके दो अर्थ हो सकते हैं , साधारण उक्ति और प्राकृतिक उक्ति । ' जिसकी जैसी प्रकृति है , उसका वैसा ही वर्णन करना ' अर्थ में ही ...
149. lappuse
Hari Mohan Mishra. व्याख्याता हैं और इनकी की भी व्याख्या लिखी है , की जो ... ही इनके विवेचन के सम्बन्ध में कुछ कहा जा सकता है । अभिनवगुप्त ने ...
Hari Mohan Mishra. व्याख्याता हैं और इनकी की भी व्याख्या लिखी है , की जो ... ही इनके विवेचन के सम्बन्ध में कुछ कहा जा सकता है । अभिनवगुप्त ने ...
320. lappuse
... है । श्री उदयभानुसिंह का कथन है- " आलोचना और मनोरंजकता के सुन्दर समन्वय के कारण रसज्ञ रजन की विशेषता ही निराली है । " " ' रसज्ञ रंजन ...
... है । श्री उदयभानुसिंह का कथन है- " आलोचना और मनोरंजकता के सुन्दर समन्वय के कारण रसज्ञ रजन की विशेषता ही निराली है । " " ' रसज्ञ रंजन ...
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अथवा अधिक अपने अभिनवगुप्त अर्थ अर्थात् अलंकार आदि आनन्दवर्धन आलोचना इन इन्होंने इस इस प्रकार ई० उसका उसके उसे एक ऐसा ओर कर करने कला कल्पना कवि कहा जा कहा है का काल कालिदास काव्य काव्य के किन्तु किया गया है किया है किसी की कुछ के कारण के द्वारा के लिए के साथ को कोई क्योंकि गए गया है गुण चाहिए जा सकता है जाता है जिस जी ने जो तक तथा तो था दिया दो दोनों नहीं है नाटक नाट्य नाम ने पर पृ० प्रकार प्रथम प्रयोग प्राप्त प्लेटो बात भरत भाव भी भेद मात्र मानते हैं माना जा सकता में ही यदि यह यहां या ये रस लक्षण वस्तु वह वही वाले विचार विवेचन विशेष वे शब्द शुक्ल जी संस्कृत सकती साहित्य से ही स्पष्ट हिन्दी हिन्दी साहित्य ही ही है हुआ है और है कि हैं हो सकता होता है होती होने