Ādhunika Hindī ālocanāGrantha-Bhāratī, 1967 - 475 lappuses |
No grāmatas satura
1.–3. rezultāts no 80.
139. lappuse
... मान लिया है । अतिशयोक्ति नामक एक अलंकार के मान लेने के बाद उसे ही सभी १. काव्यादर्श , २-१ अलंकारों का मूल मान २ . काव्यादर्श , २-३६७ । I ...
... मान लिया है । अतिशयोक्ति नामक एक अलंकार के मान लेने के बाद उसे ही सभी १. काव्यादर्श , २-१ अलंकारों का मूल मान २ . काव्यादर्श , २-३६७ । I ...
171. lappuse
... मान अर्थ निकाला जा सकता है कि बेचारा बहुत नहीं पढ़ेगा तो परीक्षा पास कैसे करेगा , पास नहीं करेगा तो नौकरी कैसे मिलेगी , नौकरो नहीं ...
... मान अर्थ निकाला जा सकता है कि बेचारा बहुत नहीं पढ़ेगा तो परीक्षा पास कैसे करेगा , पास नहीं करेगा तो नौकरी कैसे मिलेगी , नौकरो नहीं ...
305. lappuse
... मान के साथ किया जा सकता है । नवरत्नों की तुलना में भारतीय काव्यशास्त्र के मानों को ही स्वीकार किया गया । उक्त मान के आधार पर मिश्र ...
... मान के साथ किया जा सकता है । नवरत्नों की तुलना में भारतीय काव्यशास्त्र के मानों को ही स्वीकार किया गया । उक्त मान के आधार पर मिश्र ...
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अथवा अधिक अपने अभिनवगुप्त अर्थ अर्थात् अलंकार आदि आनन्दवर्धन आलोचना इन इन्होंने इस इस प्रकार ई० उसका उसके उसे एक ऐसा ओर कर करने कला कल्पना कवि कहा जा कहा है का काल कालिदास काव्य काव्य के किन्तु किया गया है किया है किसी की कुछ के कारण के द्वारा के लिए के साथ को कोई क्योंकि गए गया है गुण चाहिए जा सकता है जाता है जिस जी ने जो तक तथा तो था दिया दो दोनों नहीं है नाटक नाट्य नाम ने पर पृ० प्रकार प्रथम प्रयोग प्राप्त प्लेटो बात भरत भाव भी भेद मात्र मानते हैं माना जा सकता में ही यदि यह यहां या ये रस लक्षण वस्तु वह वही वाले विचार विवेचन विशेष वे शब्द शुक्ल जी संस्कृत सकती साहित्य से ही स्पष्ट हिन्दी हिन्दी साहित्य ही ही है हुआ है और है कि हैं हो सकता होता है होती होने