Ādhunika Hindī ālocanāGrantha-Bhāratī, 1967 - 475 lappuses |
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1.–3. rezultāts no 78.
86. lappuse
... भाव का विवेचन किया है । भरत ने दो तरह से भाव को समझाया है , एक तो व्युत्पत्ति की दृष्टि से और दूसरे जितने भी भाव हैं उन्हें गिना कर ...
... भाव का विवेचन किया है । भरत ने दो तरह से भाव को समझाया है , एक तो व्युत्पत्ति की दृष्टि से और दूसरे जितने भी भाव हैं उन्हें गिना कर ...
342. lappuse
... भाव पर विचार करते हुए कहा गया है , " व्यक्ति विषयक भाव दो प्रकार के होते हैं- एक प्रज्ञात्मक और दूसरे , सौन्दर्य विवेकी । मन में सदा ...
... भाव पर विचार करते हुए कहा गया है , " व्यक्ति विषयक भाव दो प्रकार के होते हैं- एक प्रज्ञात्मक और दूसरे , सौन्दर्य विवेकी । मन में सदा ...
378. lappuse
... भाव मानना और द्वितीय संकट हैं इन दोनों में दया को प्रधान मानना । इतना मान कर चलने के बाद उत्साह स्थायी भाव की दयावीर रस में परिणति ...
... भाव मानना और द्वितीय संकट हैं इन दोनों में दया को प्रधान मानना । इतना मान कर चलने के बाद उत्साह स्थायी भाव की दयावीर रस में परिणति ...
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अथवा अधिक अपने अभिनवगुप्त अर्थ अर्थात् अलंकार आदि आनन्दवर्धन आलोचना इन इन्होंने इस इस प्रकार ई० उसका उसके उसे एक ऐसा ओर कर करने कला कल्पना कवि कहा जा कहा है का काल कालिदास काव्य काव्य के किन्तु किया गया है किया है किसी की कुछ के कारण के द्वारा के लिए के साथ को कोई क्योंकि गए गया है गुण चाहिए जा सकता है जाता है जिस जी ने जो तक तथा तो था दिया दो दोनों नहीं है नाटक नाट्य नाम ने पर पृ० प्रकार प्रथम प्रयोग प्राप्त प्लेटो बात भरत भाव भी भेद मात्र मानते हैं माना जा सकता में ही यदि यह यहां या ये रस लक्षण वस्तु वह वही वाले विचार विवेचन विशेष वे शब्द शुक्ल जी संस्कृत सकती साहित्य से ही स्पष्ट हिन्दी हिन्दी साहित्य ही ही है हुआ है और है कि हैं हो सकता होता है होती होने