Ādhunika Hindī ālocanāGrantha-Bhāratī, 1967 - 475 lappuses |
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1.–3. rezultāts no 85.
160. lappuse
... क्योंकि वह प्रत्यक्षोपलब्ध नहीं है । प्रत्यक्ष और अनुमान में प्रत्यक्ष ही बलवान् होता है , जहां दोनों का विषय एक हो । विषयभेद होने ...
... क्योंकि वह प्रत्यक्षोपलब्ध नहीं है । प्रत्यक्ष और अनुमान में प्रत्यक्ष ही बलवान् होता है , जहां दोनों का विषय एक हो । विषयभेद होने ...
217. lappuse
... क्योंकि अभिधेय है भ्रमण विधान । दोनों अथं एक दूसरे के विरोधी हैं , अत : एक साथ अमिषा से दोनों का बोध नहीं हो सकता । क्रम से भी दोनों ...
... क्योंकि अभिधेय है भ्रमण विधान । दोनों अथं एक दूसरे के विरोधी हैं , अत : एक साथ अमिषा से दोनों का बोध नहीं हो सकता । क्रम से भी दोनों ...
219. lappuse
... क्योंकि तब अनवस्था हो जाएगी । शब्द व्यापार के अतिरिक्त अनुमान से भी यहां प्रयोजन अर्थ प्राप्त नहीं हो सकता L क्योंकि सामीप्य ...
... क्योंकि तब अनवस्था हो जाएगी । शब्द व्यापार के अतिरिक्त अनुमान से भी यहां प्रयोजन अर्थ प्राप्त नहीं हो सकता L क्योंकि सामीप्य ...
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अथवा अधिक अपने अभिनवगुप्त अर्थ अर्थात् अलंकार आदि आनन्दवर्धन आलोचना इन इन्होंने इस इस प्रकार ई० उसका उसके उसे एक ऐसा ओर कर करने कला कल्पना कवि कहा जा कहा है का काल कालिदास काव्य काव्य के किन्तु किया गया है किया है किसी की कुछ के कारण के द्वारा के लिए के साथ को कोई क्योंकि गए गया है गुण चाहिए जा सकता है जाता है जिस जी ने जो तक तथा तो था दिया दो दोनों नहीं है नाटक नाट्य नाम ने पर पृ० प्रकार प्रथम प्रयोग प्राप्त प्लेटो बात भरत भाव भी भेद मात्र मानते हैं माना जा सकता में ही यदि यह यहां या ये रस लक्षण वस्तु वह वही वाले विचार विवेचन विशेष वे शब्द शुक्ल जी संस्कृत सकती साहित्य से ही स्पष्ट हिन्दी हिन्दी साहित्य ही ही है हुआ है और है कि हैं हो सकता होता है होती होने