Ādhunika Hindī ālocanāGrantha-Bhāratī, 1967 - 475 lappuses |
No grāmatas satura
1.–3. rezultāts no 83.
186. lappuse
... को काव्य की आत्मा मान कर जो रूपक खड़ा किया गया उसी को और आगे बढ़ते हुए गुण को शूरता आदि मानवीय गुणों के समान माना गया है- " जो उस ...
... को काव्य की आत्मा मान कर जो रूपक खड़ा किया गया उसी को और आगे बढ़ते हुए गुण को शूरता आदि मानवीय गुणों के समान माना गया है- " जो उस ...
212. lappuse
... को यत्र तत्र सर्वत्र प्रसारित करने का प्रयास किया है ठीक उसी प्रकार बल्कि उसीलिए कुम्तक ने भी वर्णं से प्रबन्ध तक को बक्रता ...
... को यत्र तत्र सर्वत्र प्रसारित करने का प्रयास किया है ठीक उसी प्रकार बल्कि उसीलिए कुम्तक ने भी वर्णं से प्रबन्ध तक को बक्रता ...
449. lappuse
... को वही अनन्तकालिक वेदना अपने को प्रकाशित करती है । " " लौकिक प्रेम दार्शनिक दृष्टि से भले ही प्रतिबिम्ब हो , किन्तु काव्य में उसका ...
... को वही अनन्तकालिक वेदना अपने को प्रकाशित करती है । " " लौकिक प्रेम दार्शनिक दृष्टि से भले ही प्रतिबिम्ब हो , किन्तु काव्य में उसका ...
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अथवा अधिक अपने अभिनवगुप्त अर्थ अर्थात् अलंकार आदि आनन्दवर्धन आलोचना इन इन्होंने इस इस प्रकार ई० उसका उसके उसे एक ऐसा ओर कर करने कला कल्पना कवि कहा जा कहा है का काल कालिदास काव्य काव्य के किन्तु किया गया है किया है किसी की कुछ के कारण के द्वारा के लिए के साथ को कोई क्योंकि गए गया है गुण चाहिए जा सकता है जाता है जिस जी ने जो तक तथा तो था दिया दो दोनों नहीं है नाटक नाट्य नाम ने पर पृ० प्रकार प्रथम प्रयोग प्राप्त प्लेटो बात भरत भाव भी भेद मात्र मानते हैं माना जा सकता में ही यदि यह यहां या ये रस लक्षण वस्तु वह वही वाले विचार विवेचन विशेष वे शब्द शुक्ल जी संस्कृत सकती साहित्य से ही स्पष्ट हिन्दी हिन्दी साहित्य ही ही है हुआ है और है कि हैं हो सकता होता है होती होने