Ādhunika Hindī ālocanāGrantha-Bhāratī, 1967 - 475 lappuses |
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1.–3. rezultāts no 12.
257. lappuse
... केशव दास की कविप्रिया के पचास वर्ष पोछे प्रारम्भ होना , द्वितीय उस परम्परा के आदर्श का केशव के आदर्श से भिन्न होना । श्री भगीरथ ...
... केशव दास की कविप्रिया के पचास वर्ष पोछे प्रारम्भ होना , द्वितीय उस परम्परा के आदर्श का केशव के आदर्श से भिन्न होना । श्री भगीरथ ...
260. lappuse
... केशव- दास को है । केशव के बाद सुन्दर कवि ने सुन्दर श्रृंगार में इसका निरूपण किया । चिन्तामणि त्रिपाठी ने शृंगार मंजरी में ...
... केशव- दास को है । केशव के बाद सुन्दर कवि ने सुन्दर श्रृंगार में इसका निरूपण किया । चिन्तामणि त्रिपाठी ने शृंगार मंजरी में ...
261. lappuse
... केशव के ' विराजई ' ( बि + राजई ) का साम्य यह स्पष्ट संकेत करता है कि अलंकार के बिना काव्य अधिक नहीं शोभित होता , यह नहीं कि उसके बिना ...
... केशव के ' विराजई ' ( बि + राजई ) का साम्य यह स्पष्ट संकेत करता है कि अलंकार के बिना काव्य अधिक नहीं शोभित होता , यह नहीं कि उसके बिना ...
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अथवा अधिक अपने अभिनवगुप्त अर्थ अर्थात् अलंकार आदि आनन्दवर्धन आलोचना इन इन्होंने इस इस प्रकार ई० उसका उसके उसे एक ऐसा ओर कर करने कला कल्पना कवि कहा जा कहा है का काल कालिदास काव्य काव्य के किन्तु किया गया है किया है किसी की कुछ के कारण के द्वारा के लिए के साथ को कोई क्योंकि गए गया है गुण चाहिए जा सकता है जाता है जिस जी ने जो तक तथा तो था दिया दो दोनों नहीं है नाटक नाट्य नाम ने पर पृ० प्रकार प्रथम प्रयोग प्राप्त प्लेटो बात भरत भाव भी भेद मात्र मानते हैं माना जा सकता में ही यदि यह यहां या ये रस लक्षण वस्तु वह वही वाले विचार विवेचन विशेष वे शब्द शुक्ल जी संस्कृत सकती साहित्य से ही स्पष्ट हिन्दी हिन्दी साहित्य ही ही है हुआ है और है कि हैं हो सकता होता है होती होने