Ādhunika Hindī ālocanāGrantha-Bhāratī, 1967 - 475 lappuses |
No grāmatas satura
1.–3. rezultāts no 84.
31. lappuse
... इन तीनों को पृथक् - पृथक् तत्व मान कर आलोचना के तीन भेद मानना संगत नहीं है । सत्ता ( Reality ) मात्र अनुभूति हो चाहे न हो किन्तु उसका ...
... इन तीनों को पृथक् - पृथक् तत्व मान कर आलोचना के तीन भेद मानना संगत नहीं है । सत्ता ( Reality ) मात्र अनुभूति हो चाहे न हो किन्तु उसका ...
38. lappuse
... इन आदर्श प्रत्ययों के वास स्थान के लिए यह मिट्टी का संसार उन्हें असार जान पड़ा और उनके लिए अतीन्द्रिय जगत् की कल्पना की गई । इसका ...
... इन आदर्श प्रत्ययों के वास स्थान के लिए यह मिट्टी का संसार उन्हें असार जान पड़ा और उनके लिए अतीन्द्रिय जगत् की कल्पना की गई । इसका ...
397. lappuse
... इन स्थलों में भी पूर्ववत् यह आपत्ति की जा सकती है कि चन्द्र अपने आप इस प्रकार की भावना मन में नहीं जगाता । किन्तु जैसा कि कहा गया है ...
... इन स्थलों में भी पूर्ववत् यह आपत्ति की जा सकती है कि चन्द्र अपने आप इस प्रकार की भावना मन में नहीं जगाता । किन्तु जैसा कि कहा गया है ...
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अथवा अधिक अपने अभिनवगुप्त अर्थ अर्थात् अलंकार आदि आनन्दवर्धन आलोचना इन इन्होंने इस इस प्रकार ई० उसका उसके उसे एक ऐसा ओर कर करने कला कल्पना कवि कहा जा कहा है का काल कालिदास काव्य काव्य के किन्तु किया गया है किया है किसी की कुछ के कारण के द्वारा के लिए के साथ को कोई क्योंकि गए गया है गुण चाहिए जा सकता है जाता है जिस जी ने जो तक तथा तो था दिया दो दोनों नहीं है नाटक नाट्य नाम ने पर पृ० प्रकार प्रथम प्रयोग प्राप्त प्लेटो बात भरत भाव भी भेद मात्र मानते हैं माना जा सकता में ही यदि यह यहां या ये रस लक्षण वस्तु वह वही वाले विचार विवेचन विशेष वे शब्द शुक्ल जी संस्कृत सकती साहित्य से ही स्पष्ट हिन्दी हिन्दी साहित्य ही ही है हुआ है और है कि हैं हो सकता होता है होती होने