Ādhunika Hindī ālocanāGrantha-Bhāratī, 1967 - 475 lappuses |
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1.–3. rezultāts no 90.
103. lappuse
... अर्थात् नायक की दृष्टि से वस्तु के दो भेद माने गए हैं , अाधिकारिक और प्रासंगिक आधिकारिक वह है जो अधिकार अर्थात् फलप्राप्ति से ...
... अर्थात् नायक की दृष्टि से वस्तु के दो भेद माने गए हैं , अाधिकारिक और प्रासंगिक आधिकारिक वह है जो अधिकार अर्थात् फलप्राप्ति से ...
221. lappuse
... अर्थात् आनन्द ही प्राप्त होता है , अतएव अभिनवगुप्त ने साध्यात्मक मूल्य ( Ultimate value ) के रूप में प्रीति अर्थात् आनन्द को काव्य का ...
... अर्थात् आनन्द ही प्राप्त होता है , अतएव अभिनवगुप्त ने साध्यात्मक मूल्य ( Ultimate value ) के रूप में प्रीति अर्थात् आनन्द को काव्य का ...
337. lappuse
... अर्थात् किसी के निज जीवन के बाह्य तथा आन्तरिक अनुभव में आने वाली बातों को समष्टि , ( २ ) मनुष्यमात्र का अनुभव अर्थात् जीवन - मरण , पाप ...
... अर्थात् किसी के निज जीवन के बाह्य तथा आन्तरिक अनुभव में आने वाली बातों को समष्टि , ( २ ) मनुष्यमात्र का अनुभव अर्थात् जीवन - मरण , पाप ...
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अथवा अधिक अपने अभिनवगुप्त अर्थ अर्थात् अलंकार आदि आनन्दवर्धन आलोचना इन इन्होंने इस इस प्रकार ई० उसका उसके उसे एक ऐसा ओर कर करने कला कल्पना कवि कहा जा कहा है का काल कालिदास काव्य काव्य के किन्तु किया गया है किया है किसी की कुछ के कारण के द्वारा के लिए के साथ को कोई क्योंकि गए गया है गुण चाहिए जा सकता है जाता है जिस जी ने जो तक तथा तो था दिया दो दोनों नहीं है नाटक नाट्य नाम ने पर पृ० प्रकार प्रथम प्रयोग प्राप्त प्लेटो बात भरत भाव भी भेद मात्र मानते हैं माना जा सकता में ही यदि यह यहां या ये रस लक्षण वस्तु वह वही वाले विचार विवेचन विशेष वे शब्द शुक्ल जी संस्कृत सकती साहित्य से ही स्पष्ट हिन्दी हिन्दी साहित्य ही ही है हुआ है और है कि हैं हो सकता होता है होती होने