Ādhunika Hindī ālocanāGrantha-Bhāratī, 1967 - 475 lappuses |
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1.–3. rezultāts no 76.
153. lappuse
... अपने को नाटक का पात्रविशेष मानकर उसका अभिनय कर सकता है । कि वह पात्रविशेष दुष्यन्त है । अब विचारणीय यह है कि क्या समय तक रंगमंच पर ...
... अपने को नाटक का पात्रविशेष मानकर उसका अभिनय कर सकता है । कि वह पात्रविशेष दुष्यन्त है । अब विचारणीय यह है कि क्या समय तक रंगमंच पर ...
306. lappuse
... अपनी सम्मति प्रकाश कर देने से ही अपने को उत्तम समा- लोचक समझने लगते हैं , मानों निज अनुमति अनुमोदनार्थं कतिपय पंक्तियों का उद्धत ...
... अपनी सम्मति प्रकाश कर देने से ही अपने को उत्तम समा- लोचक समझने लगते हैं , मानों निज अनुमति अनुमोदनार्थं कतिपय पंक्तियों का उद्धत ...
390. lappuse
... अपने को अभिन्न समझने लगता है । " आश्रय से अपने को अभिन्न समझ लेने पर स्वाभाविक है कि दर्शक उसके रति आदि स्थायी भाव को अपना समझे ...
... अपने को अभिन्न समझने लगता है । " आश्रय से अपने को अभिन्न समझ लेने पर स्वाभाविक है कि दर्शक उसके रति आदि स्थायी भाव को अपना समझे ...
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अथवा अधिक अपने अभिनवगुप्त अर्थ अर्थात् अलंकार आदि आनन्दवर्धन आलोचना इन इन्होंने इस इस प्रकार ई० उसका उसके उसे एक ऐसा ओर कर करने कला कल्पना कवि कहा जा कहा है का काल कालिदास काव्य काव्य के किन्तु किया गया है किया है किसी की कुछ के कारण के द्वारा के लिए के साथ को कोई क्योंकि गए गया है गुण चाहिए जा सकता है जाता है जिस जी ने जो तक तथा तो था दिया दो दोनों नहीं है नाटक नाट्य नाम ने पर पृ० प्रकार प्रथम प्रयोग प्राप्त प्लेटो बात भरत भाव भी भेद मात्र मानते हैं माना जा सकता में ही यदि यह यहां या ये रस लक्षण वस्तु वह वही वाले विचार विवेचन विशेष वे शब्द शुक्ल जी संस्कृत सकती साहित्य से ही स्पष्ट हिन्दी हिन्दी साहित्य ही ही है हुआ है और है कि हैं हो सकता होता है होती होने