Ādhunika Hindī ālocanāGrantha-Bhāratī, 1967 - 475 lappuses |
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1.–3. rezultāts no 80.
344. lappuse
... अथवा कलात्मक जिसमें नैतिकता का प्रश्न पृथक नहीं रहता , ' ध्वनि ' में अवसित हो जाता है । " " इन दोनों प्रकारों का सम्बन्ध इन्होंने ...
... अथवा कलात्मक जिसमें नैतिकता का प्रश्न पृथक नहीं रहता , ' ध्वनि ' में अवसित हो जाता है । " " इन दोनों प्रकारों का सम्बन्ध इन्होंने ...
395. lappuse
... अथवा गुण अथवा क्रिया के साम्य के आधार पर अप्रस्तत योजना की जाती है और द्वितीय वह है जहां व्यापार समष्टि के साम्य के आधार पर ...
... अथवा गुण अथवा क्रिया के साम्य के आधार पर अप्रस्तत योजना की जाती है और द्वितीय वह है जहां व्यापार समष्टि के साम्य के आधार पर ...
405. lappuse
... अथवा फल नहीं होकर जड़ होना ही इसकी विशेषता है । जड़ के बिना न तो फूल हो सकते हैं जोर न फल ही । " " शुक्ल जी ने यहीं कल्पना के ज्ञान होने ...
... अथवा फल नहीं होकर जड़ होना ही इसकी विशेषता है । जड़ के बिना न तो फूल हो सकते हैं जोर न फल ही । " " शुक्ल जी ने यहीं कल्पना के ज्ञान होने ...
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अथवा अधिक अपने अभिनवगुप्त अर्थ अर्थात् अलंकार आदि आनन्दवर्धन आलोचना इन इन्होंने इस इस प्रकार ई० उसका उसके उसे एक ऐसा ओर कर करने कला कल्पना कवि कहा जा कहा है का काल कालिदास काव्य काव्य के किन्तु किया गया है किया है किसी की कुछ के कारण के द्वारा के लिए के साथ को कोई क्योंकि गए गया है गुण चाहिए जा सकता है जाता है जिस जी ने जो तक तथा तो था दिया दो दोनों नहीं है नाटक नाट्य नाम ने पर पृ० प्रकार प्रथम प्रयोग प्राप्त प्लेटो बात भरत भाव भी भेद मात्र मानते हैं माना जा सकता में ही यदि यह यहां या ये रस लक्षण वस्तु वह वही वाले विचार विवेचन विशेष वे शब्द शुक्ल जी संस्कृत सकती साहित्य से ही स्पष्ट हिन्दी हिन्दी साहित्य ही ही है हुआ है और है कि हैं हो सकता होता है होती होने